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हमारा दृष्टिकोण

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भारत की संस्कृति, सृष्टि की उत्पत्ति (1972949116), ग्रहों तथा काल गणनातंत्र का पूर्ण वर्णन करता हैं, जहाँ भारत ४ युगों (सतयुग, त्रेत्रायुग, द्वापर एवं कलियुग ) एंव ग्रहों की स्थिति का वर्णन है, जहाँ प्राचीन सप्तर्षि 6676 ईपू0, कलियुग संवत 3102 ईपूव, सप्तर्षि संवत 3076 ईपू0, वर्णन है वहीं हम विक्रम सवंत के अनुसार 2075 में है, अगर हम विक्रम संवत 57 ईपू गणना की माने, तो अग्रेजी कलेंडर 2018 से भारत अन्य देशों की तुलना में 57 वर्ष आगे चल रहा है, जो इस बात की पुष्टि करता है कि भारत की संस्कृति अति प्राचीन तथा विश्व का गुरू एवं मार्गदर्शक रहा है, जहाँ आज पूरी दुनिया शोध के आधार पर, किसी तर्क पर पहुंचती है तो पाती है। कि यह तो भारत के संस्कृतियों में पहले से वर्णित है। आज विश्व के वैज्ञानिक यह मान चुकें है कि जो भी आज हम शोध एवं सृजन कर रहें है, यह तो पहले से ही भारत के वेदों, पुराणों एवं साहित्यों में लिखित और वर्णित है, इसलिए आज दुनिया हमारें वेदों, पुरोणों, साहित्यों के अध्ययन द्वारा शोध के नये आयामों की तरफ बढ़ रही है। जहाँ भारत को छोड़, पूरी दुनिया भूमि को, मिट्टी का टुकड़ा, पेड़ पोधों, पशुओं आदि को एक दृष्टि से देखती है, वहीँ भारत भूमि को माँ, आकाश को पिता, कण-कण को भगवान, पेड़-पोधों को देवता एवं जीवनदाता, पशुओं को देवों के सहयोगी क रूप में मानते एवं पूजते आ रहे है है। सिर्फ भारत ही है, जो पूरी दुनिया को एक कुटुम्ब की दृष्टिकोण से देखता है, इसलिए भारत वसुधैव कुटुम्बकम में अस्था एवं विश्वास रखता है। ऐही करण है कि हम प्रेमस्वरूपी संस्कृति में विश्वास रखते है। ऐसी महान संस्कृति और कही नही सिर्फ भारत में देखने को मिलेगी।

भारत संसार की प्राचीनम संस्कृतियों में से एक होने के साथ आज भी जीवित अवस्था में है। भारतीय संस्कृति सर्वांगीणता, विशालता, उदारता, प्रेम और सहिष्णुता की दृष्टि से अन्य संस्कृतियां की अपेक्षा सबसे महान एवं कर्म प्रधान संस्कृति है। भारत वेदो, पुराणों, उपनिषदों, महाकाव्यों, साहित्यों, काव्य रचनाओं, संगीत, नृत्य, नाट्य कला, चित्रकला, मुर्तिकला, वास्तुकला आदि का उदभव का देश है। जिसकी कण-कण ने महात्माओं को जन्म दिया है, जिसकी पुष्टि भारत का कण-कण देता आ रहा है और वैज्ञानिको के विषलेशणों को चुनौती दे रहा है। भारतीय सनातन धर्म विश्व के धर्मों में प्रमुख है। जिसमें अन्य हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म, जैन धर्म आदि जैसे धर्म शामिल है। भारत विभिन्न परम्परां एवं रीतियों का देश है। भारत गुरू परम्परा के साथ सभी को अभिनन्दन या अभिवादन के विभिन्न सम्मान सूचक शब्दों द्वारा सम्मान करने की परम्परा में विश्वास रखता है। भारत ने तर्कवाद, बुद्धिवाद, विज्ञान, गणित, भौतिवाद, नास्तिकता, अजेयवाद आदि की सबसे पुरानी और सबसे प्रभावशाली धर्मनिरपेक्ष परम्पराओं को जन्म दिया है। भारत एक रहस्मयी देश है, इसमें कोई अतिशयोक्ति नही होनी चाहिए।

भारत विविधता में एकता का प्रतिक रखने वाला विश्व पटल पर अपने जीवन्त रूप में विराजमान है। आज भी भारत में प्रतिभाओं की कोई कमी नही है। यू कहें तो भारत आज भी विश्वगुरू है। भारत लम्बें समय से मुगलों और अग्रेजों की गुलामी, उनकी सभ्यता एवं संस्कृतियां ने भारत की सभ्यता एवं संस्कृतियों, साहित्यों को तोड़ने-जोड़नें का जो प्रयास किया, वह आज हमारी विविधता और एकता को खंडित कर रहा है। जो हमें धर्मो, जातियों एवं भाषावाद के रूप में दिखाई दे रहा है। वर्तमान में राजसत्ता पाने की जुगत में जातिगत, धर्मगत, भाषा आधरित पार्टी/दल/संगठन सक्रिय हो गये है। जिनका एक उद्देश्य है। जातिगत, धर्मगत, भाषागत आधार पर बॉटना और राजनीति करना और हम, अज्ञानी सोच के कारण मुर्खों की भॉति इनकी मकड़जाल में आकर अपने देश की सम्प्रभुता एकता, अंखडता, संस्कृति को तोड़ते जा रहे है।

भारत महापरिवार पार्टी का उद्देश्य एवं विजन पूर्णतयः स्पष्ट है। हम सबसे पहले एक राष्ट्र, एक देश, एक भारत के नागरिक है, और इस देश में हम विभिन्न धर्म और जातियों के साथ रहते है। इस प्रकार मेरा मानना है कि हम एक महापरिवार की भाँति रहते है। और हमे यह नही भूलना चाहिए कि हम विश्वपटल पर विविधताओं के साथ एक है और हम ही देश को एक सुंदर परिवार बना सकते है और हम ही इसे विखडिंत समाज बना सकते है। जिस प्रकार जब हम एक सुखी परिवार की कल्पना करते है, तो हम हर सम्भव प्रसास करते है कि परिवार सुखी, समृद्ध, हिंसा मुक्त बन सके। तो जिस भूमि पर आप रहते है। उसे क्यों धर्म, जाति, भाषा के आधार बॉंटने का प्रयास कर रहें है। पार्टी की स्पष्ट अवधारणा है कि भारत एक महापरिवार की भाँति है इसलिए पार्टी एक सुखी, समृद्ध, धर्मगत, जॉतिगत, भाषागत विषमताओं से मुक्त सुंदर शिक्षित, स्वांलम्बी भारत महापरिवार बनाना चाहता हैः।

हमें अपने राजनीति दृष्टिकोण में बदलाव लाने की जरूरत है। वर्तमान राजनीति और उनसे उत्पन्न होने वाले समस्यओं से देश की जनता भली भाँति परिचित है। स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर आज तक देश की जनता को, हमारे राजनेताओं ने धर्म, जॉति, भाषावाद, क्षेत्रवाद के नाम पर बांटने और लूटने का काम किया है। वर्तमान में देश की राजनीति ने इतना क्रुर रूप धारण कर लिया है। कि वे राजनीति में आने और सत्ता प्राप्त करने के लिए किसी भी हद तक चले जाते है। हम जब तक पूरी राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन नही कर पाते है, तब तक एक सुन्दर शांतिपृय/विकासमुखी देश की परिकल्पना नही कर सकते। कही न कही इन सभी कारणों के पीछे हमसब जिम्मेदार है। यू कहें जो हमारे बीच में पढ़े लिखे लोग है, जो राजनीति में आना नही चाहते, उन्हें लगता है कि लोगों के पास जाना, जीहजूरी करना, आदि काम हम क्यों करें, हम तो अपनी योग्यता क्षमता के आधार पर अपना जीवन यापन कर सकते है। हमारी इसी सोच ने एक अशिक्षित राजतंत्र व्यवस्था को जन्म दे दिया है। इसी प्रकार एक अशिक्षित व्यक्ति जो समाज में किसी भी स्तर तक जाकर जीहजूरी झुठ, फरेब जालसाजी तथा अपराध करने वाला जब राजनीति में आकर हमारे उम्मिदवार के रूप में समाने खड़ा होता है। तो न चाहते हुए भी हम अपना मतदान देते ही है। जब हमने एक अनपढ़ एवं आपराधिक छवि वाले व्यक्ति को राजसत्ता सौपी है, तो उससे आप विकास की उम्मीद कैसे कर सकते है। आज देश में जॉति और धर्म के आधार पर बहुत सी पार्टी कार्य कर रही और वह अपने जॉति, धर्म विशेष को उम्मिदवार बनाती है और वे जॉतिगत समिकरणों के आधार पर सत्ता में काबिज भी होते जा रहें है, हमारे देश का संसद भवन हो या प्रदेश का विधानसभा भवन ऐसे लोगों से भरा पड़ा है। जो राजनीतिक कुच्रक का एक शासक दल बन चुका है। जब तक हम इसे समाप्त नही कर पायेगें तब तक हम सुंदर देश की कल्पना नही कर सकते।

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